ड्रेंचिंग क्या है? वो कैसे करते हैं?
कैसे हो भाइयों? आज हम खेत में काम आनेवाली एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया – ड्रेंचिंग – के बारे में बात करते हैं।
ड्रेंचिंग का एकदम सीधा और सरल मतलब है – कोई भी तरल पदार्थ पौधों की जड़ों तक पहुंचाना। अब ये तरल पदार्थ नाइट्रोजन बायोफर्टिलाइजर, ऑर्गैनिक पेस्टिसाइ, या ऑर्गैनिक फंगीसाइड, इनमें से कोई भी हो सकता है। इसकी प्रक्रिया अच्छे से समझ लेते हैं, ताकि खेती के दौरान हमें जब भी ड्रेंचिंग करनी होगी, हमें पता हो वो कैसे करना है।
पौधों को पानी देने के लिए जो स्प्रे टैंक हमारे पास होता है – जो सामान्यतः 20 लीटर का होता है – वो अच्छी तरह साबुन से साफ कर लें। ताकि पहले इस्तेमाल किए हुए किसी भी रासायनिक पदार्थ का एक भी अंश उसमें न बचे। उसके बाद, तरल पदार्थ की एक लीटर की बोतल खोलें, उसे पानी में मिलाकर इस 20 लीटर की स्प्रे टैंक में भर दें। फिर टैंक का नोजल यानी जो ठुंठनी होती है, उसे हटा दें, और वो पदार्थ से मिला हुआ पानी सीधे पौधे की जड़ों में डालें।
इस तरह ड्रेंचिंग करने से, जो भी पदार्थ पौधे की जड़ को मिल रहा है, वो अगर नाइट्रोजन बायोफर्टिलाइजर (जैसे बायो एनपीके) है, तो पौधे को पर्याप्त पोषण तत्व मिलेंगे, अगर पेस्टिसाइड या फंगीसाइड है तो पौधे की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी, और फसल कीटकों या रोगों से सुरक्षित रहेगी। इससे हमें स्वस्थ फसल मिलेगी, जिसकी गुणवत्ता भी अच्छी होगी।
अब, ये जान लेते हैं कि ड्रेंचिंग करना कब है।
उसके लिए सबसे अच्छा समय होता है जब हम अपने खेत में, बुआई के 25-30 के बाद, पहली सिंचाई करते हैं। इस वक्त पौधा छोटा होता है, उसकी लम्बाई 1 से 2 फीट की होती है, और हम उसकी जड़ को ठीक से देख पाते हैं। तो ऐसे में पौधों की जड़ों तक हम पर्याप्त पोषण या संरक्षक पदार्थ पहुंचा सकते हैं।
ड्रेंचिंग पहली सिंचाई के समय करना इसलिए जरुरी है, क्योंकि तब पौधा छोटा होता है। बाद में, पौधे थोड़े बड़े होने बाद, अगर हम ड्रेंचिंग करें तो वो जड़ों तक पहुंच नहीं पाएगा। जड़ों के ऊपर, या पत्तों पर पड़ा रह जाएगा, जिससे पौधे को बहुत फायदा नहीं मिलेगा।
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